उलझी उलझी सी क्यों रहती हो आजकल
इन लटों को सुलझाओ तो कोई बात कहूं
बुनती रहती हो जो ख्यालो के जाल दिनभर
उन सपनो से बाहर आओ तो बात कहूं
कुरेदती हो छुपे दबे ज़ख्मो को अक्सर
उन पर मिटटी डाल पाओ तो बात कहूं
जो अमीट सी आग जलाए रहती हो भीतर
संतोष की शीत से बुझाओ तो बात कहूं
खुशिया खोजते गुज़र जाती है ज़िन्दगी कई
ख़ुशी मैं भी तू खुश न रह पाए तो क्या बात कहूं
इन लटों को सुलझाओ तो कोई बात कहूं
बुनती रहती हो जो ख्यालो के जाल दिनभर
उन सपनो से बाहर आओ तो बात कहूं
कुरेदती हो छुपे दबे ज़ख्मो को अक्सर
उन पर मिटटी डाल पाओ तो बात कहूं
जो अमीट सी आग जलाए रहती हो भीतर
संतोष की शीत से बुझाओ तो बात कहूं
खुशिया खोजते गुज़र जाती है ज़िन्दगी कई
ख़ुशी मैं भी तू खुश न रह पाए तो क्या बात कहूं
9 comments:
i have told u this lot many times, and I saying it again, U should write more often in Hindi, Gal. Its awesomely written, love the flow. Tum hamesha yun hi kuch, kyun nahin likhti, agar yun hi likhti rahogi toh koi baat kahoon.. :)
@ mystupendoussalvation: inhi baaton ki baaton mai chalo kuch baat to hui ;)
baat toh hamesha hoti hi hai, tum kuch sunao or kuch meri suno... unhi sunne-sunane main toh yun baat hoti hai.. :)
Bahut sahi. I can imagine you sitting with ruffled hair. :)
After a long time I got something nice to read.
@COSMOS :it is not my best though i am kinda trying to get myself back on writing poem..
:) welcome back to what you do best. I wish I could write in Hindi, I can hardly speak properly, but you write like magic.
Beautiful..especially the last line..I hope you'll write more often.
@Me Thinks: Thanks :)
Wah dost! aisa laga jaise tune muje dekh kar wo baat likh di ho jo main keh na saki...aakhri line jo bat kehti hai us bat se to jaise main khud pareshan hu..
@Rashmi Drolia: Tine... koi hindi film ka dialogue marne ki iccha ho rahi hai "DOST EK DUSARE KE DIL KI BAAT PAD LETE HAI" :D :D :D
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