Saturday, September 20, 2014

ख़ामोशी



ताकते रहते है दीवारों पर टंगी तस्वीरों को
पर कोई गुफ़्तगू करने से ये कायर दिल डरता है 

एक, दो, तीस, साठ कहा चल दिया ये वक़्त 

इतनी जल्दी मैं है फिर भी ठहरा सा लगता है 

दर्द उठता है दिल से और कानो मैं चीखता है 

पलकें बंद करो तो आँखों मैं उतर आता है 

सरकने लगते है खारे पानी के मोती किनारों से 

जो आँखों मैं उमड़ा सैलाब ना सम्हलता है 

आह आती है दिल से की सिसकियो से तोड़ दे ये ख़ामोशी  

मगर ये कमज़ोर दिल इतनी हिम्मत कहा रखता है 

ताकते रहते है दीवारों पर टंगी तस्वीरों को 

पर कोई गुफ़्तगू करने से ये कायर दिल डरता है। 

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